Monday, October 13, 2008

आकाश नीला क्यों? सुबह और शाम को सूर्य लाल क्यों?

आपने देखा तो होगा ही, आकाश का नीला रंग! कितना मनभावन होता हैसूर्योदय भी बहुत लुभावना होता हैअग्नि का लाल गोला जब समुद्र से उदय होता है, तो बहुत सुंदर दृश्य होता हैना जाने कितने ही कवियों ने नीले अम्बर और लाल सूर्य पर ढेरों रचनाएँ लिखीं हैंकिंतु क्या आपने कभी सोचा है कि आख़िर आकाश कर रंग नीला ही क्यों? उगते और ढलते सूर्य का रंग लाल ही क्यों?

अगली बार जब हम लिखेंगे तो आपको बताने का प्रयत्न करेंगे कि ऐसा क्यों होता हैआप सोचने का प्रयास कीजिये और यदि आपकी मस्तिष्क में कोई घंटी बजती है तो टिप्पणी के रूप में लिख दीजिये
सोचने के लिए कोई संकेत चाहिए तो ............ बताईये कि इन्द्रधनुष में कितने रंग होते हैं?

Tuesday, October 07, 2008

मधुमक्खियाँ: बिना पढ़ी लिखी अभियंता


हम फिर से आ गए हैं, इस बार आपको मधुमक्खियों के छत्ते में से कुछ विज्ञान की बातें बताने। मधुमक्खियाँ फूलों के रस से शहद का निर्माण करती हैं और उससे अपने छत्ते में जमा करके रखती हैं, जिससे सर्दी के मौसम में उनके पास खाने-पीने की कमी न हो। मधुमक्खियों का छत्ता मोम से बनता है और १ ग्राम मोम बनाने के लिए मधुमक्खी १६ ग्राम शहद का प्रयोग करती हैं। यह छत्ता मधुमक्खियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके प्रत्येक कोष्ठ का प्रयोग मधुमक्खियाँ अपने बच्चों (लार्वा) को रखने और शहद को जमा करने के लिए करतीं हैं।
इस चित्र को ध्यान से देखिये, ये मधुमक्खी का छत्ता है। इसमें हरेक कोष्ठ की दीवारें इस प्रकार बनी होतीं हैं की वे एक दूसरे को १२० डिग्री के कोण पर काटती हैं और एक व्यापक षट्कोण सममिति के साथ छत्ता बनाती हैं। सराहना योग्य बात ये है की मधुमक्खियाँ हरेक कोष्ठ को बिल्कुल सही दूरी पर और एकदम सटीक कोण पर बनाती हैं। ये वाकई में प्रशंसनीय है। मधुमक्खियाँ बिना इंजीनियरिंग पढ़े हुए भी अच्छी अभियंता होतीं हैं। किंतु, मधुमक्खी के छत्ते के कोष्ट षट्कोण आकार के होते क्यों हैं?
यही प्रश्न बहुत से वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में भी आया और इस पर शोध किया गया। विज्ञानी यान ब्रोजेक के अनुसार इस प्रकार बनाया गया ढांचा, निश्चित आयतन में कम से कम मोम का उपयोग करके बनाया जा सकता है। जी हाँ!! मधुमक्खियों से मनुष्य ने सीखा कि कैसे कम से कम सामग्री का उपयोग करके अधिक से अधिक मजबूत ढाँचे बनाये जा सकते हैं। इस प्रकार बनाये गए honeycomb panels का विस्तृत अनुप्रयोग , फर्नीचर आदि उद्योगों में किया जाता है जहाँ मजबूत (आसानी से न मुड़ने वाले) और हलके तख्तों की आवश्यकता होती है।

तो ये था मधुमक्खियों से सीखा हुआ सबक। आगे भी आपको ऐसी ही जानकारियों से अवगत कराते रहेंगे। यदि आपको ये जानकारी रोचक लगी हो तो जरूर बताइयेगा।

Monday, October 06, 2008

बिल्लियों के गिरने के पीछे का विज्ञान भाग-२

जानकर अच्छा लगा की कई लोगों को हमारे इस पोस्ट की प्रतीक्षा थी| लीजिये हम आ गए हैं आपको इस जानकारी से अवगत करवाने|

बिल्लियाँ एक ऐसा प्राणी हैं, जो अद्भुत रूप से अपने शरीर को हवा में ही घुमा सकती हैं और नीचे गिरने से पहले अपने शरीर को इस प्रकार संयोजित कर सकती हैं कि चोट कम से कम लगे| (नेशनल ज्योग्रफ़िक पर इसका एक विडियो देखने के लिए यहाँ चटका लगायें।) यही कारण है कि बिल्लियों को ऊँचाई से बिल्कुल भी डर नहीं लगता और वो ऊंची इमारतों की खिड़कियों से अपने शिकार को देखते ही झपट पड़ती हैं| कई वैज्ञानिकों को बिल्लियों के इस व्यवहार पर आश्चर्य हुआ तो इस पर शोध किया गया| बिल्लियों के इस व्यवहार को high-rise syndrome कहा जाता है| शोध में ये पाया गया कि २ से ३२ मंजिला इमारतों से गिरने पर ९० प्रतिशत बिल्लियाँ बच गयीं| और आश्चर्यजनक बात ये थी कि जो बिल्लियाँ मंजिल या उससे कम ऊँचाई से गिरीं थीं उनको चोटें ज्यादा आयीं थीं (यहाँ देखें)।

इसको समझने से पहले आईये समझते हैं सीमान्त चाल (terminal speed) को| जब कोई वस्तु हवा में नीचे गिराई जाती है तो कुछ समय तक (गुरुत्वाकर्षण के कारण) उसकी चाल बढती जाती है, किंतु कुछ समय के पश्चात् पर लगने वाला (ऊर्ध्व नीचे की ओर) गुरुत्वाकर्षण बल, हवा के कर्षण के कारण (ऊर्ध्व ऊपर के की ओर) लगने वाले बल के बराबर हो जाता है और इसके बाद उस वस्तु की चाल बढ़ना बंद हो जाती हैइस स्थिर चाल को ही सीमान्त चाल कहते हैंबिल्लियों के मामले में ये पाया गया कि लगभग मंजिल गिरने के बाद उनकी चाल सीमान्त चाल तक पहुँच जाती हैतो जो बिल्लियाँ मंजिल या उससे अधिक ऊँचाई से गिरती हैं, उनकी चाल सीमान्त चाल तक पहुँच जाती है और फ़िर उनको अपने आपको संयोजित करने का समय मिल जाता हैजबकि जो बिल्लियाँ मंजिल से कम ऊँचाई से गिरती हैं, वो सीमान्त चाल तक पहुँचने से पहले ही धरती से टकरा जाती हैं और अपने शरीर को संयोजित नहीं कर पातीं

तो ये हुए वैज्ञानिक कारण!
अब किसी भी शोध के पश्चात् उसके निष्कर्षों से अपने हाथ धो लेना वैज्ञानिकों कि पुरानी आदत हैतो इसी प्रकार इस शोध के बाद भी वैज्ञानिकों का कहना है कि अधिक ऊँचाई से गिरने पर मारी जाने वाली बिल्लियाँ पशु विशेषज्ञ के पास नहीं ले जाई गई होंगी और इस प्रकार अधिक ऊँचाई से गिरकर मरने वाली बिल्लियाँ शायद इस शोध का हिस्सा ही ना रहीं हों (देखें)।

साभार: http://en.wikipedia.org/wiki/High-rise_syndrome

Wednesday, October 01, 2008

बिल्लियों के गिरने के पीछे का विज्ञान

आईये आज आपको एक रोचक जानकारी से अवगत कराते हैं|

क्या आपको पता है की बिल्लियों का ऊँचाई से गिरना एक प्रकार से रोचक है? बिल्ली एक ऐसा प्राणी है जिसे ऊँचाई से डर नही लगता क्योंकि इसमें एक अद्भुत क्षमता है गिरते समय अपने आपको घुमा लेने की| और येही कारण है कि बिल्लियाँ बहुत ऊँचाई से गिरते हुए भी चोट नहीं खातीं| किंतु इससे भी रोचक तथ्य ये है, कि यदि बिल्ली को कम ऊँचाई (५-६ मंजिल) से गिराया जाए तो उन्हें बहुत चोटें आने कि सम्भावना रहती है, बजाय इसके कि उन्हें ७ मंजिल या उससे भी ज्यादा ऊँचाई से गिराया जाए|
है ना रोचक बात? आप सोचिये कि ऐसा क्यों हो सकता है? जब हम अगली बार लिखेंगे तो आप को विस्तार से बताएँगे कि ऐसा क्यों होता है|