Friday, December 25, 2009

देहरादून की सर्दी

और..... समय ने अपना फैसला सुना ही दिया। हम भारत में ही हैं, हालाँकि इस सब प्रक्रिया में बहुत कन्फ्यूजन रहा। हमने अपना वीसा इत्यादि सभी बनवा लिया था किन्तु, भाग्य में यहीं रहना लिखा था इसलिए यहीं हैं।
अब देहरादून की सर्दी के मजे ले रहे हैं और नन्हीं परी के साथ खेलकर पारिवारिक सुखों की अनुभूति प्राप्त कर रहे हैं।

जब हम कनाडा से देहरादून आये थे तो सोचा नहीं था यहाँ हमें सर्दी परेशान कर सकती है। सोचते थे ..... अरे ...... ये भी कोई सर्दी है? तापमान २०-२५ डिग्री इतना तो वहाँ (कनाडा में) पर गर्मियों में हुआ करता था। और कडाके की सर्दी में भी वहां पर २ साल रहते हुए भी हमें कभी एक छींक तक नहीं आई। किन्तु यहाँ तो ऐसी गजब की सर्दी लगती है की पूछिए मत !!!!! सर्दी से हाथ पैर टेड़े हुए जाते हैं, कभी खांसी, कभी जुकाम तो कभी नाक बंद। समझ नहीं आता की ऐसा क्यों है? शायद इसलिए कि वहाँ पर तो सभी कुछ वातानुकूलित होता था। घर, दफ्तर सब कुछ गरम रखा जाता था। कभी ठन्डे पानी में हाथ ही नहीं डाला... केवल बाहर सड़क पर जाते समय कुछ देर कि सर्दी लगती थी... और वो भी मजेदार लगती थी। घर के अन्दर घुसते ही सब कुछ गरम।
यहाँ तो हीटर भी एक ही कमरे में लगाया है पानी कब तक गरम करें.... हाथ धोने के लिए तो ठन्डे पानी का प्रयोग करना पड़ता है। २-२ स्वेटर पहनने पर भी सर्दी अन्दर घुसी जाती हैं।
श्रीमती जी की तारीफ़ करनी होगी....... वो तो रसोई में काम करतीं हैं कभी बर्तन धोना कभी ठंडी सब्जियों को धोना इत्यादिहमें तो कमरे से बाहर जाने का नाम सुनते ही ठण्ड लगने लगती हैं
वाकई सोचा नहीं था कि यहाँ इतनी सर्दी पड़ सकती है। शायद सर्दी इतनी नहीं जितना उसका अहसास है।
किन्तु इसके भी अपने मजे हैं, सर्दी में रजाई ओड़ कर सोने का अपना अलग ही आनंद है। बस... हाथ न धोने पड़े।


Saturday, October 24, 2009

लंबे समय बाद .......

पिछली बार लिखते समय सोचा था कि अब से रेगुलर लिखा करूँगा। लेकिन लिख नहीं पाया, आकाश का रंग नीला क्यों होता है इस पर फ़िर कभी चर्चा होगी। किंतु समाचार ये है कि बहुत सोच विचार के बाद हम कनाडा से बोरिया बिस्तर समेट कर भारत वापस आ गए हैं। जनवरी के आखिरी हफ्ते में ही हम यहाँ वापस आ गए थे। यहाँ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में वैज्ञानिक की नौकरी मिल गई इसलिए सोचा कि वापस अपने वतन चला जाए। तब से अब तक बहुत समय बीत चुका है जीवन काफ़ी बदल गया है और हाल ही में दशहरे के दिन भगवान की कृपा से घर में लक्ष्मी का जन्म हुआ है।

अब, आजकल फ़िर से मन असमंजस में घिरा हुआ है। स्विट्जरलैंड से एक नौकरी का प्रस्ताव है। किंतु अगर विदेश में ही रहना था तो फ़िर यहाँ आते ही क्यो? एक तरफ़ स्विट्जरलैंड में नौकरी है तो दूसरी तरफ़ भारत में स्थायित्व। खैर जो भी होगा अच्छे के लिए होगा।

Monday, October 13, 2008

आकाश नीला क्यों? सुबह और शाम को सूर्य लाल क्यों?

आपने देखा तो होगा ही, आकाश का नीला रंग! कितना मनभावन होता हैसूर्योदय भी बहुत लुभावना होता हैअग्नि का लाल गोला जब समुद्र से उदय होता है, तो बहुत सुंदर दृश्य होता हैना जाने कितने ही कवियों ने नीले अम्बर और लाल सूर्य पर ढेरों रचनाएँ लिखीं हैंकिंतु क्या आपने कभी सोचा है कि आख़िर आकाश कर रंग नीला ही क्यों? उगते और ढलते सूर्य का रंग लाल ही क्यों?

अगली बार जब हम लिखेंगे तो आपको बताने का प्रयत्न करेंगे कि ऐसा क्यों होता हैआप सोचने का प्रयास कीजिये और यदि आपकी मस्तिष्क में कोई घंटी बजती है तो टिप्पणी के रूप में लिख दीजिये
सोचने के लिए कोई संकेत चाहिए तो ............ बताईये कि इन्द्रधनुष में कितने रंग होते हैं?

Tuesday, October 07, 2008

मधुमक्खियाँ: बिना पढ़ी लिखी अभियंता


हम फिर से आ गए हैं, इस बार आपको मधुमक्खियों के छत्ते में से कुछ विज्ञान की बातें बताने। मधुमक्खियाँ फूलों के रस से शहद का निर्माण करती हैं और उससे अपने छत्ते में जमा करके रखती हैं, जिससे सर्दी के मौसम में उनके पास खाने-पीने की कमी न हो। मधुमक्खियों का छत्ता मोम से बनता है और १ ग्राम मोम बनाने के लिए मधुमक्खी १६ ग्राम शहद का प्रयोग करती हैं। यह छत्ता मधुमक्खियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके प्रत्येक कोष्ठ का प्रयोग मधुमक्खियाँ अपने बच्चों (लार्वा) को रखने और शहद को जमा करने के लिए करतीं हैं।
इस चित्र को ध्यान से देखिये, ये मधुमक्खी का छत्ता है। इसमें हरेक कोष्ठ की दीवारें इस प्रकार बनी होतीं हैं की वे एक दूसरे को १२० डिग्री के कोण पर काटती हैं और एक व्यापक षट्कोण सममिति के साथ छत्ता बनाती हैं। सराहना योग्य बात ये है की मधुमक्खियाँ हरेक कोष्ठ को बिल्कुल सही दूरी पर और एकदम सटीक कोण पर बनाती हैं। ये वाकई में प्रशंसनीय है। मधुमक्खियाँ बिना इंजीनियरिंग पढ़े हुए भी अच्छी अभियंता होतीं हैं। किंतु, मधुमक्खी के छत्ते के कोष्ट षट्कोण आकार के होते क्यों हैं?
यही प्रश्न बहुत से वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में भी आया और इस पर शोध किया गया। विज्ञानी यान ब्रोजेक के अनुसार इस प्रकार बनाया गया ढांचा, निश्चित आयतन में कम से कम मोम का उपयोग करके बनाया जा सकता है। जी हाँ!! मधुमक्खियों से मनुष्य ने सीखा कि कैसे कम से कम सामग्री का उपयोग करके अधिक से अधिक मजबूत ढाँचे बनाये जा सकते हैं। इस प्रकार बनाये गए honeycomb panels का विस्तृत अनुप्रयोग , फर्नीचर आदि उद्योगों में किया जाता है जहाँ मजबूत (आसानी से न मुड़ने वाले) और हलके तख्तों की आवश्यकता होती है।

तो ये था मधुमक्खियों से सीखा हुआ सबक। आगे भी आपको ऐसी ही जानकारियों से अवगत कराते रहेंगे। यदि आपको ये जानकारी रोचक लगी हो तो जरूर बताइयेगा।

Monday, October 06, 2008

बिल्लियों के गिरने के पीछे का विज्ञान भाग-२

जानकर अच्छा लगा की कई लोगों को हमारे इस पोस्ट की प्रतीक्षा थी| लीजिये हम आ गए हैं आपको इस जानकारी से अवगत करवाने|

बिल्लियाँ एक ऐसा प्राणी हैं, जो अद्भुत रूप से अपने शरीर को हवा में ही घुमा सकती हैं और नीचे गिरने से पहले अपने शरीर को इस प्रकार संयोजित कर सकती हैं कि चोट कम से कम लगे| (नेशनल ज्योग्रफ़िक पर इसका एक विडियो देखने के लिए यहाँ चटका लगायें।) यही कारण है कि बिल्लियों को ऊँचाई से बिल्कुल भी डर नहीं लगता और वो ऊंची इमारतों की खिड़कियों से अपने शिकार को देखते ही झपट पड़ती हैं| कई वैज्ञानिकों को बिल्लियों के इस व्यवहार पर आश्चर्य हुआ तो इस पर शोध किया गया| बिल्लियों के इस व्यवहार को high-rise syndrome कहा जाता है| शोध में ये पाया गया कि २ से ३२ मंजिला इमारतों से गिरने पर ९० प्रतिशत बिल्लियाँ बच गयीं| और आश्चर्यजनक बात ये थी कि जो बिल्लियाँ मंजिल या उससे कम ऊँचाई से गिरीं थीं उनको चोटें ज्यादा आयीं थीं (यहाँ देखें)।

इसको समझने से पहले आईये समझते हैं सीमान्त चाल (terminal speed) को| जब कोई वस्तु हवा में नीचे गिराई जाती है तो कुछ समय तक (गुरुत्वाकर्षण के कारण) उसकी चाल बढती जाती है, किंतु कुछ समय के पश्चात् पर लगने वाला (ऊर्ध्व नीचे की ओर) गुरुत्वाकर्षण बल, हवा के कर्षण के कारण (ऊर्ध्व ऊपर के की ओर) लगने वाले बल के बराबर हो जाता है और इसके बाद उस वस्तु की चाल बढ़ना बंद हो जाती हैइस स्थिर चाल को ही सीमान्त चाल कहते हैंबिल्लियों के मामले में ये पाया गया कि लगभग मंजिल गिरने के बाद उनकी चाल सीमान्त चाल तक पहुँच जाती हैतो जो बिल्लियाँ मंजिल या उससे अधिक ऊँचाई से गिरती हैं, उनकी चाल सीमान्त चाल तक पहुँच जाती है और फ़िर उनको अपने आपको संयोजित करने का समय मिल जाता हैजबकि जो बिल्लियाँ मंजिल से कम ऊँचाई से गिरती हैं, वो सीमान्त चाल तक पहुँचने से पहले ही धरती से टकरा जाती हैं और अपने शरीर को संयोजित नहीं कर पातीं

तो ये हुए वैज्ञानिक कारण!
अब किसी भी शोध के पश्चात् उसके निष्कर्षों से अपने हाथ धो लेना वैज्ञानिकों कि पुरानी आदत हैतो इसी प्रकार इस शोध के बाद भी वैज्ञानिकों का कहना है कि अधिक ऊँचाई से गिरने पर मारी जाने वाली बिल्लियाँ पशु विशेषज्ञ के पास नहीं ले जाई गई होंगी और इस प्रकार अधिक ऊँचाई से गिरकर मरने वाली बिल्लियाँ शायद इस शोध का हिस्सा ही ना रहीं हों (देखें)।

साभार: http://en.wikipedia.org/wiki/High-rise_syndrome

Wednesday, October 01, 2008

बिल्लियों के गिरने के पीछे का विज्ञान

आईये आज आपको एक रोचक जानकारी से अवगत कराते हैं|

क्या आपको पता है की बिल्लियों का ऊँचाई से गिरना एक प्रकार से रोचक है? बिल्ली एक ऐसा प्राणी है जिसे ऊँचाई से डर नही लगता क्योंकि इसमें एक अद्भुत क्षमता है गिरते समय अपने आपको घुमा लेने की| और येही कारण है कि बिल्लियाँ बहुत ऊँचाई से गिरते हुए भी चोट नहीं खातीं| किंतु इससे भी रोचक तथ्य ये है, कि यदि बिल्ली को कम ऊँचाई (५-६ मंजिल) से गिराया जाए तो उन्हें बहुत चोटें आने कि सम्भावना रहती है, बजाय इसके कि उन्हें ७ मंजिल या उससे भी ज्यादा ऊँचाई से गिराया जाए|
है ना रोचक बात? आप सोचिये कि ऐसा क्यों हो सकता है? जब हम अगली बार लिखेंगे तो आप को विस्तार से बताएँगे कि ऐसा क्यों होता है|

Friday, September 26, 2008

असली क्या नकली क्या

जी हाँ, एक बार फ़िर से शुरू हो गया मानवाधिकार वालों के धरने प्रदर्शन| बात हो रही है, दिल्ली पुलिस की मुठभेड़
की| मुझे तो बस एक ही बात समझ नहीं आती कि जब हजारों लोग विस्फोट में मारे जाते हैं तो मानवाधिकार वाले कहाँ चले जाते हैं? क्या किसी ने आज तक एक भी धरना प्रदर्शन देखा/सुना है जिसमें इन लोगों ने मरने वालों के मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई हो? अजीब बिडंवना है....

अब बिना किसी प्रमाण और कड़ी के पुलिस को भी तो कुछ संदिग्ध लोगों को पकड़ कर कार्यवाही करने से ही तो पता चल सकता है कि आख़िर इस सब के पीछे कौन है?
कहते हैं की मुठभेड़ नकली है, अब कौन कहते हैं मैं समझता हूँ कि ये बताने की अवश्यकता नहीं होगी| ये भी कहा जा रहा है कि केवल एक समुदाय विशेष को बदनाम करने के उद्देश्य से ये मुठभेड़ की गई| अच्छा जी.... आपकी बात ही मानते हैं| तो इसका मतलब ये हुआ कि मोहन चंद्र शर्मा जी ने अपने को ख़ुद ही गोली मार ली| अच्छा तरीका है आत्महत्या का| अर्थात मोहन जी ने एक समुदाय विशेष को बदनाम करने के लिए ख़ुद को मार डाला | अच्छा चलिए माना कि भारत में ऐसा ही होता है, जहाँ भी विस्फोट होते हैं, मोहन जी जैसे लोग दूसरे समुदाय को बदनाम करने के लिए अपनी बलि चढा देते हैं| चाहे वाराणसी हो या दिल्ली, मुंबई हो या जयपुर, अहमदाबाद हो या बंगलोर, सभी जगह मोहन जी जैसे लोगों ने बम रखे और दूसरे समुदाय के लोगों को बदनाम करने के उद्देश्य से अपनी बलि दे दी.
और दुनिया के बाकी सभी देशों में भी ऐसा क्यों हो रहा है? आपके कहने का मतलब ये है, कि अमरीका में जो ट्विन टावर विस्फोट हुआ, तो वहां उस इमारत में काम करने वाले लोगों ने ही विमान को अपने आप से टकरा लिया ताकि वो एक समुदाय विशेष को बदनाम कर सके| या फ़िर कंधार में भारतीय विमान का अपहरण विमान यात्रियों ने ही कर लिया होगा ताकि उससे कंधार ले जाके एक समुदाय विशेष के लोगों को बदनाम किया जा सके ?

महोदय, जब सारी दुनिया उलटी दिखने लगे तो महापुरुष कहते हैं कि समय आ गया है अब आप ख़ुद सीधे हो जाईये|