Tuesday, October 03, 2006

मनोदशा

जीवन में कब क्या हो जाये, कुछ पता नहीं है। कभी कभी एसा हो जाता है कि हम सोच भी नहीं सकते। मन में कुछ बातें सोचने के लिये जगह भी नहीं होती और वो बातें हो जाती हैं।
फिर मन उन तथ्यों को मानने के लिये तैयार ही नहीं होता है । लेकिन वैसा हो चुका होता है, और वही सचाई होती है, फिर भी अनतर्मन में एक द्वंद सा चलता रहता है। यकीन नहीं होता की एसा हो चुका है। यही जीवन है।

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