Friday, September 26, 2008

असली क्या नकली क्या

जी हाँ, एक बार फ़िर से शुरू हो गया मानवाधिकार वालों के धरने प्रदर्शन| बात हो रही है, दिल्ली पुलिस की मुठभेड़
की| मुझे तो बस एक ही बात समझ नहीं आती कि जब हजारों लोग विस्फोट में मारे जाते हैं तो मानवाधिकार वाले कहाँ चले जाते हैं? क्या किसी ने आज तक एक भी धरना प्रदर्शन देखा/सुना है जिसमें इन लोगों ने मरने वालों के मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई हो? अजीब बिडंवना है....

अब बिना किसी प्रमाण और कड़ी के पुलिस को भी तो कुछ संदिग्ध लोगों को पकड़ कर कार्यवाही करने से ही तो पता चल सकता है कि आख़िर इस सब के पीछे कौन है?
कहते हैं की मुठभेड़ नकली है, अब कौन कहते हैं मैं समझता हूँ कि ये बताने की अवश्यकता नहीं होगी| ये भी कहा जा रहा है कि केवल एक समुदाय विशेष को बदनाम करने के उद्देश्य से ये मुठभेड़ की गई| अच्छा जी.... आपकी बात ही मानते हैं| तो इसका मतलब ये हुआ कि मोहन चंद्र शर्मा जी ने अपने को ख़ुद ही गोली मार ली| अच्छा तरीका है आत्महत्या का| अर्थात मोहन जी ने एक समुदाय विशेष को बदनाम करने के लिए ख़ुद को मार डाला | अच्छा चलिए माना कि भारत में ऐसा ही होता है, जहाँ भी विस्फोट होते हैं, मोहन जी जैसे लोग दूसरे समुदाय को बदनाम करने के लिए अपनी बलि चढा देते हैं| चाहे वाराणसी हो या दिल्ली, मुंबई हो या जयपुर, अहमदाबाद हो या बंगलोर, सभी जगह मोहन जी जैसे लोगों ने बम रखे और दूसरे समुदाय के लोगों को बदनाम करने के उद्देश्य से अपनी बलि दे दी.
और दुनिया के बाकी सभी देशों में भी ऐसा क्यों हो रहा है? आपके कहने का मतलब ये है, कि अमरीका में जो ट्विन टावर विस्फोट हुआ, तो वहां उस इमारत में काम करने वाले लोगों ने ही विमान को अपने आप से टकरा लिया ताकि वो एक समुदाय विशेष को बदनाम कर सके| या फ़िर कंधार में भारतीय विमान का अपहरण विमान यात्रियों ने ही कर लिया होगा ताकि उससे कंधार ले जाके एक समुदाय विशेष के लोगों को बदनाम किया जा सके ?

महोदय, जब सारी दुनिया उलटी दिखने लगे तो महापुरुष कहते हैं कि समय आ गया है अब आप ख़ुद सीधे हो जाईये|

Thursday, September 25, 2008

टोरंटो जाने कि तैयारी

आज से लगभग एक साल पहले हम टोरंटो घूमने गए थे| ४ दिन की छुट्टी लेकर गए थे और CN टावर, नियाग्रा प्रपात, टोरंटो के द्वीपों के साथ वहां पर मौजूद भारतीय बाजार भी घूमा था| जाने का मुख्य उद्देश्य ये था की हमें पता नहीं था कि हम इस साल भी यहाँ कनाडा में रहेंगे कि नहीं| और १ वर्ष कनाडा में रहकर भी हम यहाँ से नियाग्रा प्रपात देखे बिना तो नहीं जाना चाहते थे| किंतु, अब एक वर्ष बीत जाने के बाद भी हम यहीं हैं अपनी श्रीमती जी के साथ| इसलिए सोचा कि कनाडा को छोड़ कर जाने से पहले (इस बार लगभग पक्का है कि हम यहाँ से कहीं और प्रस्थान कर ही रहे हैं) उन्हें भी एक बार ये सब चीजें दिखा दी जायें| तो अब फ़िर से योजना बनी है, और टिकेट खरीद लिए गए हैं, होटल भी बुक हो चुका है, केवल उड़ान भरने कि देरी है| जी हाँ, अगले सप्ताह वृहस्पतिवार को हम लोग टोरंटो के लिए रवाना हो रहे हैं|
टोरंटो जाने का यह समय अच्छा इसलिए भी है कि अगले महीने से यहाँ भीषण ठण्ड प्रारम्भ हो जाएगी और दिन भी छोटे होते चले जाएँगे| हालाँकि अभी से ७:३० बजे सूर्य देव छुप जाते हैं, लेकिन नवम्बर से तो यहाँ पर घड़ियाँ एक घंटे पीछे खिसका दी जाएंगी तो दिन और भी जल्दी ढल जाएगा|
तो फिर टोरंटो से आने के बाद आपको वहाँ के फोटो दिखायेंगे|

Wednesday, September 24, 2008

२ साल बाद

आज बैठे बैठे कुछ पुराने मित्रों के चिठ्ठे देख रहा था तो याद आया की एक बार हमने भी चिठ्ठा लिखने की सोची थी और
कुछ तो लिखा भी था. फ़िर से अपना चिठ्ठा खोल के देखा तो लगभग २ साल पहले का लिखा हुआ चिठ्ठा अभी भी मौजूद है.
अफजल को तो अब तक फांसी नहीं हुई है, किंतु हमारे जीवन में बहुत बदलाव आ गए है. हम अब शादीशुदा मनुष्य हैं
और बंगलोर से पीएचडी पूरी करके कनाडा में आगे का शोध कार्य कर रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे कल की सी बात है जब हमने
पिछली बार अफजल के बारे में लिखा था. पूरे २ साल होने को आए अब.

चलिए, अब कोशिश करेंगे की लिखते रहे.
आप लोग पढ़ते रहिये और अपनी टिप्पणियाँ लिखते रहिये जिससे हमें लिखने में और भी ज्यादा मजा आए.